मरी हुई बेटी की याद में साइकिल पर खड़ी कर दी ₹23000 करोड़ की कंपनी, पर एक गलती ने सब किया बर्बाद, कभी सबकी पसंद बने निरमा का आज क्यों मिट गया नामो-निशान

Rise and Fall of Nirma Washing Power: मरी हुई बेटी को वापस पाने की जिद में एक पिता ने जो किया वो मिसाल है. घर के आंगन में वॉशिंग पाउडर बनाकर उसे साइकिल पर बेचकर न केवल बेटी को दुनियाभर में मशहूर कर दिया बल्कि 23000 करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी.

Nirma Washing Powder Story: दूध सी सफेदी, निरमा से आई…ये जिंगल शायद ही कोई होगा, जिसने न सुना हो. सफेद चकाचक कपड़े पहनी क्यूट सी बच्ची देशभर में छा गई, लोगों ने उसे निरमा गर्ल का नाम दे दिया, लेकिन इस ‘निरमा गर्ल’ के मायूम चेहरे के पीछे दर्दनाक कहानी बहुत कम लोगों को पता है. पिता-पुत्री के प्यार ने भारत में एक ऐसे डिटर्जेंट कंपनी को जन्म दिया, जिसने विदेशी कंपनियों को उखाड़ फेंका. लोगों के घरों में जगह बना ली, लेकिन एक गलती और न बदलने की जिद ने उसे बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया. आज कहानी उस निरमा डिटर्जेंट की, जो पहले सबकी पसंद बना और फिर उसका नामो-निशान मिट गया.

गुजरात के अहमदाबाद में रहने वाले करसन भाई पटेल (Karsanbhai Patel) एक किसान परिवार में हुआ. पिता ने बेटे को खूब पढ़ाया ताकि बेटा अच्छी नौकरी कर सके. करसन भाई की सरकारी नौकरी भी लगी. शादी हुईर घर में एक प्यारी की बेटी का जन्म हुआ . करसन भाई ने बेटी का नाम निरुपमा रखा. प्यार से घर में सब उसे निरमा बुलाते थे. करसन भाई बेटी पर जान छिड़कते थे, लेकिन एक हादसे में निरमा की मौत हो गई. बेटी को खोने के बाद करसन भाई पूरी तरह से टूट गए.

मरी हुई बेटी के प्यार में करसन भाई पटेल कुछ ऐसा करना चाहते थे लोग उनकी निरमा को हमेशा याद रखे. बेटी की याद में उन्होंने साल 1969 अपने घर के आंगन से ही डिटर्जेंट बनाने की शुरुआत कर दी. कमेस्ट्री की पढ़ाई की थी, इसलिए उन्होंने सस्ता डिटर्जेंट का बिजनेस शुरू करने का फैसला किया. वॉशिंग पाउडर तो बन गया, लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती थी कि उसे बेचा कैसे जाए. उन्होंने वॉशिंग पाउडर का नाम रखा निरमा, ताकि घर-घर तक उनकी बेटी का नाम पहुंच सके.

मरी हुई बेटी के प्यार में करसन भाई पटेल कुछ ऐसा करना चाहते थे लोग उनकी निरमा को हमेशा याद रखे. बेटी की याद में उन्होंने साल 1969 अपने घर के आंगन से ही डिटर्जेंट बनाने की शुरुआत कर दी. कमेस्ट्री की पढ़ाई की थी, इसलिए उन्होंने सस्ता डिटर्जेंट का बिजनेस शुरू करने का फैसला किया. वॉशिंग पाउडर तो बन गया, लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती थी कि उसे बेचा कैसे जाए. उन्होंने वॉशिंग पाउडर का नाम रखा निरमा, ताकि घर-घर तक उनकी बेटी का नाम पहुंच सके.

करसन भाई ने खुद साइकिल उठाई और गली-गली घूमकर खुद वॉशिंग पाउडर बेचना शुरू कर दिया. उन्होंने डिटर्जेंट पाउडर के पैकेट लेकर घर-घर जाते थे, उसे बेचने की कोशिश करते थे. उस दौर में मार्केट में HUL के सर्फ का दबदबा था. लोगों के लिए डिटर्जेंट पाउडर का मतलब ही था सर्फ. 15 रुपये के सर्फ के सामने निरमा के लिए मार्केट कैप्चर करना आसान नहीं था.

करसक भाई पटेल ने मात्र 3 रुपये में निरमा डिटर्जेंट बेचना शुरू कर दिया. उन्होंने लोगों को भरोसा दिलाने के लिए गारंटी दी कि अगर अगर कपड़े साफ नहीं हुए तो पैसे वापस कर देंगे. सर्फ के मुकाबले निरमा 4 गुना सस्ता था. कम दाम और अच्छी क्वालिटी ने अपना असर दिखाया और उनका फॉर्मूला हिट हो गया. देखते ही देखने निरमा मिडिल क्लास से लेकर लोअर मिडिल क्लास की पहली पसंद बन गया. 80 के दशक में निरमा का मार्केट में 60 फीसदी हिस्से पर कब्जा था.निरमा ने सर्फ को भी फेल कर दिया.

मार्केट पर कब्जा जमाने के लिए निरमा ने विज्ञापन पर खर्च बढ़ाया. टीवी, रेडियो, अखबार में एड चलने लगे. निरमा गर्ल ने लोगों के दिलों में जगह बना ली. दूध सी सफेदी निरमा से आई…जैसे जिंगल लोगों की जुंबा पर चढ़ गए. निरमा तेजी से बढ़ने लगा. इस तरह एक पिता की जिद ने उसकी बेटी को मरने के बाद दुनियाभर में मशहूर कर दिया.

सब ठीक चल रहा था, लेकिन वक्त ने ऐसी करवट ली कि निरमा का नामो-निशान मिट गया. जो स्ट्रेटजी निरमा ने हिंन्दुस्तान यूनिलीवर के सर्फ के लिए अपनाया वहीं अब दूसरी कंपनियों ने निरमा के लिए अपनाना शुरू कर दिया. प्रतिद्वंदी कंपनियां तेजी से बढ़ रही थी. कंपनियां निरमा की गलतियां बताने लगी. निरमा पर सस्ते का टैग लगा था, जिसे प्रतिद्वंदी कंपनियों ने अलग तरीके से भुनाना शुरू कर दिया.

दूसरी कंपनियों ने ये बताना शुरू कर दिया कि निरमा क्यों सस्ती है? सुगंध का अभाव, फैब्रिक को नुकसान, हाथों में रुखापन और पानी में कम घुलने जैसी गलतियों को उजागर कर प्रतिद्वंदियों ने निरमा का मार्केट खराब करना शुरू कर दिया. घड़ी, व्हील्स जैसे डिटर्जेंट मार्केट में निरमा से कुछ के मार्जिन पर लॉन्च कर दी गई. उन्होंने विज्ञापनों में खुद को निरमा से बेहतर बताना शुरू कर दिया. निरमा ने गलती कि उन्होंने खुद को बदला नहीं. समय के साथ न तो पैकजिंग में बदलाव किया और न ही लोगो बदला.

निरमा ने बढ़ते कॉम्पिटिशन के साथ खुद को नहीं बदला, जो उसकी सबसे बड़ी गलती साबित हुई. लोगों के खर्च करने की क्षमता बढ़ी तो उन्होंने निरमा से दूरी बना ली और एरियल, टाइड और सर्फ एक्सल जैसे डिटर्जेंट का रुख करना शुरु कर दिया. निरमा का मार्केट 60 फीसदी से घटकर 12 फीसदी और फिर सिर्फ 4 फीसदी तक रह गया. सस्ते के चक्कर में यंग जेनरेशन ने निरमा से दूरी बना ली.

करसनभाई पटेल की निरमा अपने सस्ते दाम और प्रभावी मार्केटिंग के दम पर 1990 के दशक तक डिटर्जेंट बाजार में टॉप प्लेयर बन गया. उसकी बाजार हिस्सेदारी 60% तक पहुंच गई थी, लेकिन 2000 के दशक में वो सिमट कर सिर्फ 4% के आसपास रह गई है. विज्ञापन में भी घड़ी से बड़ी भूल हुई, उन्होंने महिला की जगह पुरुष से कपड़े धुलवाने शुरू कर दिए. कंपनी ने ऋतिक रोशन को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया. जिसकी वजह से वो महिलाओं से कनेक्ट नहीं हो सका और निरमा से बाजार आउट हो गया.

भले ही कंपनी डिटर्जेंट मार्केट में फेल हुई हो, उन्होंने अपना कारोबार अलग-अलग सेक्टर में फैला लिया. निरमा यूनिवर्सिटी के अलावा कंपनी ने सीमेंट के कारोबार में बड़ी जगह बना ली. फर्मा सेक्टर में कंपनी ने अपने पैर फैला लिए. निरमा यूनिवर्सिटी और केमिकल का कारोबार भी शुरू किया.

Source : https://zeenews.india.com/hindi/photos/in-dead-daughter-love-man-build-rs-23000-crore-company-selling-detergent-on-bicycle-how-nirma-lost-its-shine/2784673/-2784681

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